कविता : बाँच्ने कुनै आधार छैन

कविता : बाँच्ने कुनै आधार छैन

कसरी रोकुँ बर्बरी बग्ने आँसुको यो भेल

बुझ्दैन कैले सामन्ती सरकार आँसुको मोलतोल
एक वर्षसम्म दाम छैन कत्ती हुँ उखु किसान
कसरी बचाऊँ जीवन अब आधार केही छैन

रिन काडी साहुको गरियो खेती गुलियो उखुको
नपाउँदा मोल उखुको फेरि अमिलो मन भो
धितोमा लेुको साहुको रिन उकास्न पाुछैन
कसरी बचाऊ जीवन अब आधार केही छैन

उखुको मूल्य तोकिदेऊ सरकार भनेको कत्ति भो
न्यायको ढोका खुलेन अझै अब त अत्ति भो
लिएको रिन बन्दकी राखी जग्गा र जमिन
कसरी बचाऊँ जीवन अब आधार केही छैन

एक गाँस खाने एक आङ ढाक्ने हरायो आधार
सरकारको हालत बाँदरको पुच्छर लौरो न हतियार
किसानको घाउमा नुनचुक हैन लगाइदेऊ मलम
कसरी जिऊँ जीवन अब आधार केही छैन

सनिता भण्डारी

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